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सप्रे जी की स्मृतियों में सफर -149व जयंती

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"मैं महाराष्ट्री हूं पर हिंदी के विषय में मु्झे उतना ही अभिमान है जितना कि किसी हिंदीभाषी को हो सकता है।" "जिस शिक्षा से स्वाभिमान की वृत्ति जागृत नहीं होती वह शिक्षा किसी काम की नहीं है" "विदेशी भाषा में शिक्षा होने के कारण हमारी बुद्धि भी विदेशी हो गई है।" क्या ये तीन कथन काफी नहीं एक रचनाकार के विचारों में सफर लेने के लिए? कौन दे सकता हैं इतना दर्जा अपने मातृ मूर्ति की भाषा के समान सम्मान? एक विचार ,एक भाषा ,भारत देश को एक सूत्र में बाँधने वाली हिंदी भाषा के प्रति असामान्य प्रेम निष्ठा ही एक राष्ट्र महाराष्ट्र से पार लाया यही हिंदी सूत्र । आज हमारे भारतीय हिंदी साहित्य में एक वह ज्योति ,जिन्होंने अपने से अधिक अंश देश की स्वतंत्रता के लिए , एक स्वंत्रसेनानी बने , आज हमारे "एक टोकरी भर मिट्टी" के रचनाकार माधव राव सप्रे जी का 149व जयंती के अवसर पर कोटि कोटि नमन।  स्वाति बलिवाडा 19-07-2020 swatipatnaik@yandex.com