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अनकही सात मछ्लियों की कहानी

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ये कहानी शहर से दूर हरियाली के गोद में बसी एक गाँव की अनकही कहानी हैं , जो घर के आंगन में खेलती हुई पोती की हैं।   चारपाई पर लेटे हुए कई सारे सितारों को गिन रही वो गुड़िया दादा जी के कहानियों को सुनते-सुनते प्रायः सो जाती थी । चाँद की रोशनी में सात राजकुमार और सात मछलियों की कहानी प्रारंभ होता हीं था, वह छोटी युवरानी सपनों में विहार करती थी। दादा हर रात वही कहानी सुनाते थे, वह भी हर रात कहानी के आधे में ही पलक झपकती थी। दादा जी की वह लाडली एक क्षण भर न दिखे मानो पूरा गांव में ढिंढोरा मचता था। ऐसा तो होना ही था क्योंकि, थी ही वो एकलौती पोती जो 3 पीढ़ियों के बाद लक्ष्मी बनके आयी थी। घर में जब भी खेलती थी उसके चरण पर पायल छम-छम झूमते थे। उसके बड़ी बड़ी आँखे, घुँघराले बाल, तोते जैसे बोली पूरे गाँव को चकित रखता था। आईना पकड़कर ऐसे सजती थी जैसे नई दुल्हन श्रृंगार कर रही  हो। वो अपने नाखून को लालिमा से सजाती थी, मास्टर जी भी साथ में बैठ जाते थे। बोलती थी तुम तो लड़की नही हो! मास्टर जी दादा जी के धर्म में थे, बोलते थे तुम लगाओ तो सही, और कहते थे, देखो मेरे नाखून कितने बड़े हैं, लाल रंग मे