Room no.906
रूम नंबर 906
दरवाजा खुलने की आवाज़ आई थी, मैने जट से मुड़कर देखा, रोशिनी की रफ्तार तेज़ी से आँखों में चौकी। काला परछाई कुछ देर बाद सफ़ेद कोट और गले में स्टेटेस्कोप की माला लटकाये हुए डॉक्टर साहब अये थे। नया कमरा में प्रमोशन से आई हूँ या आई.सी.यु से बदली हूँ , ये खुश खबरी हैं या ये भाव को समझना या समजाना समज से बाहर था। डॉक्टर साहब मेरे हाथ थामे और मैं पूरी तरह होश में आ गई थी। " ये, तुम्हारा हथेली नीली क्यों हैं ?" डॉक्टर ने पूछा। तुरंत मैं अपनी माँ का चेहरा देखकर डॉक्टर को सफ़ेद मुँह लगा कर देखने लगी। डॉक्टर मेरे कपड़े देखे और धीरे से बोले कि " पहले हैंडवाश करो" , सेलाइन बोतल को पकड़ कर मेरी माँ मेरे साथ वाशबेसिन तक चली। सारा नीला रंग पानी से मिट गया, डॉक्टर हँसकर बोले "ये तुम्हारे नीले कुर्ती का असर है।" ये सुनकर सब की साँसे धीमी हुई।
तभी मेने देखा एक नया चेहरा पर्दे से झाँक कर हमारी ओर देख रही थी। पार्वती ! दरवाज़े पर लगाई गई मरीज़ों का परिचय पर्ची पर Room 906 Tapasvi 21 Female के साथ Parvati 21 Female भी था। काफ़ी कमज़ोर बदन की थी,पीले आँखे और दाँत हीं दिख रहे थे, गाल सूखे पड़े अंदर गुस गए थे, हाथ ऐसे थे जैसे चुडिया भी आसानी से गिर जाये, नाड़ियो में सेलाइन बोतल गुसा गुसा कर हाथों का हाल ही बदल गया।
कुछ हीं देर में दो अजनबी आये थे,पहला आदमी सफेद वर्दी, टोपी पकड़ा हुआ था, कार ड्राइवर लग रहा था और दूसरा आदमी काला चश्मा , चारों उंगलियो में चार अँगुटिया चमक रही थी । वो दोनों मेरे बिस्तर के आगे से गुज़र कर पार्वती के पास गए। उनके आने के कुछ देर बाद पार्वती के पास रात भर ठहरी एक बूढ़ी औरत अपने बैग संभाल कर कमरा से निकल गई। वो दोनों में से एक टेबल पर रखी चीजो को संभाल रहा था और एक अपने साथ लाये फलो को टेबल पर रखा और खुर्ची पर बैठा था , हाथो को जोड़कर पहला आदमी ज़मीन पर बैठकर रसीद पकड़ कर सर थाम कर बैठा, अपने चश्मे निकाल कर कुछ देर उनके बीच बाते हुई और आखिर अपने सूटकेस से पैसे निकालकर पहले आदमी के हाथ में रखा था। पार्वती और पहला आदमी के आँखों में खुशी के आँसू से नमी होगई, इस कष्ट समय में भगवान लगा, तुरंत पैर पकड़कर , हाथ जोड़कर धन्यवाद प्रकट की और पार्वती ने हाथ जोड़कर खुशी की आँसू बहने लगी, अपने घड़ी को देखकर खुर्ची से उठा , साथ हीं चलकर अलविदा देकर आदमी लौट आया और रसीद पकड़ कर नीचे दौड़ा।
दोनों काफ़ी खुशी से फलो को निकालकर खाने लगे और कुछ देर में पार्वती को दवाई खिलाकर कुछ देर बैठकर बातचीत की और पोटली से कुछ कपड़े,सिंदूर,कंगी,पाउडर बिस्तर पर रखने लगा । वह आदमी अपनी जगह से उठकर दो बिस्तर के बीच पर्दे द्वारा दीवार खड़ी की। लेटी लेटी हुई ही मैं गहरी नींद में कब चल बसी,कब हुआ पता ही नहीं चला । कुछ घण्टो बाद बहुत ठण्ड महसूस होने लगी । नींद खुल गई थी, माँ नर्स से कुछ कह रही थी और नर्स सेलाइन बोतल की स्पीड ऊपर-नीचे कर रही थी। पापा इस बीच में बाहर से आये, गर्मी के कारण सारा शरीर पसीने से भीग गया था। बाहर तेज़ी लूह चल रही थी। मुँह पैर धोने के बाद अपने साथ लाये फलो को एक एक बैग से निकालने लगे, और उन्हें भी ध्यान से धो कर जूस निकालने लगे। फिलहाल मेरा काम तो कुछ नहीं रहा, बस पैट भर समय पे खाना और समय पे दवाई लेना । अपने अकेलेपन को महसूस करने के लिए ये खड़वी दवाई काफ़ी थी। इस बीच में पार्वती की ओर ये आदमी फ़ोन पकड़ कर आगे बढ़ा, "तुम्हारे मम्मी का फ़ोन आया हैं", फ़ोन पर बात करते हीं सारे भावनाओ से भरी चहरा पार्वती ने एक ही घूँट से आँसू द्वारा बाहर निकाली।
मेरी माँ ये सब देख कर रहा नहीं गया, तुरंत आदमी से पूछताछ की "बेटी को क्या हुआ? " , वो आदमी बोला, "माँ जी हमारा बेटी हुई है,दो हफ्ते भी नहीं हुए हैं, बेटी को और इसको ,दोनो को जॉन्डिस होगया हैं, पैदा होते ही वो जॉन्डिस से ग्रस्त हैं, बेटी को हरे रंग बल्ब के नीचे रखे हैं और इसको यहाँ। माँ का दूध भी पीने को अनुमति नहीं है, मेरी रानी माँ के दूध के बिना हीं मृत्यु से लड़ रही हैं। क्या करे हम अनपढ़ हैं ,ऐसे बड़े अस्पताल में ठहरना हमारे लिए मुश्खिल हैं , सालों भर कमाई यही जा रही हैं।
अचानक दर्द भरी चीक आयी, वो पार्वती का था। उसके पैट की पट्टियों को संभालते हुए मुड़ रही थी। पार्वती का पति चौक कर उठा। उसने तुरंत अपने पति के सहारे बाथरूम की ओर बड़ी। इस बीच मेरे पापा मेरे सर को सहलाते हुए संतरा का जूस पिलाया।
दरवाजा खुलने की आवाज़ आई थी, मैने जट से मुड़कर देखा, रोशिनी की रफ्तार तेज़ी से आँखों में चौकी। काला परछाई कुछ देर बाद सफ़ेद कोट और गले में स्टेटेस्कोप की माला लटकाये हुए डॉक्टर साहब अये थे। नया कमरा में प्रमोशन से आई हूँ या आई.सी.यु से बदली हूँ , ये खुश खबरी हैं या ये भाव को समझना या समजाना समज से बाहर था। डॉक्टर साहब मेरे हाथ थामे और मैं पूरी तरह होश में आ गई थी। " ये, तुम्हारा हथेली नीली क्यों हैं ?" डॉक्टर ने पूछा। तुरंत मैं अपनी माँ का चेहरा देखकर डॉक्टर को सफ़ेद मुँह लगा कर देखने लगी। डॉक्टर मेरे कपड़े देखे और धीरे से बोले कि " पहले हैंडवाश करो" , सेलाइन बोतल को पकड़ कर मेरी माँ मेरे साथ वाशबेसिन तक चली। सारा नीला रंग पानी से मिट गया, डॉक्टर हँसकर बोले "ये तुम्हारे नीले कुर्ती का असर है।" ये सुनकर सब की साँसे धीमी हुई।
तभी मेने देखा एक नया चेहरा पर्दे से झाँक कर हमारी ओर देख रही थी। पार्वती ! दरवाज़े पर लगाई गई मरीज़ों का परिचय पर्ची पर Room 906 Tapasvi 21 Female के साथ Parvati 21 Female भी था। काफ़ी कमज़ोर बदन की थी,पीले आँखे और दाँत हीं दिख रहे थे, गाल सूखे पड़े अंदर गुस गए थे, हाथ ऐसे थे जैसे चुडिया भी आसानी से गिर जाये, नाड़ियो में सेलाइन बोतल गुसा गुसा कर हाथों का हाल ही बदल गया।
कुछ हीं देर में दो अजनबी आये थे,पहला आदमी सफेद वर्दी, टोपी पकड़ा हुआ था, कार ड्राइवर लग रहा था और दूसरा आदमी काला चश्मा , चारों उंगलियो में चार अँगुटिया चमक रही थी । वो दोनों मेरे बिस्तर के आगे से गुज़र कर पार्वती के पास गए। उनके आने के कुछ देर बाद पार्वती के पास रात भर ठहरी एक बूढ़ी औरत अपने बैग संभाल कर कमरा से निकल गई। वो दोनों में से एक टेबल पर रखी चीजो को संभाल रहा था और एक अपने साथ लाये फलो को टेबल पर रखा और खुर्ची पर बैठा था , हाथो को जोड़कर पहला आदमी ज़मीन पर बैठकर रसीद पकड़ कर सर थाम कर बैठा, अपने चश्मे निकाल कर कुछ देर उनके बीच बाते हुई और आखिर अपने सूटकेस से पैसे निकालकर पहले आदमी के हाथ में रखा था। पार्वती और पहला आदमी के आँखों में खुशी के आँसू से नमी होगई, इस कष्ट समय में भगवान लगा, तुरंत पैर पकड़कर , हाथ जोड़कर धन्यवाद प्रकट की और पार्वती ने हाथ जोड़कर खुशी की आँसू बहने लगी, अपने घड़ी को देखकर खुर्ची से उठा , साथ हीं चलकर अलविदा देकर आदमी लौट आया और रसीद पकड़ कर नीचे दौड़ा।
दोनों काफ़ी खुशी से फलो को निकालकर खाने लगे और कुछ देर में पार्वती को दवाई खिलाकर कुछ देर बैठकर बातचीत की और पोटली से कुछ कपड़े,सिंदूर,कंगी,पाउडर बिस्तर पर रखने लगा । वह आदमी अपनी जगह से उठकर दो बिस्तर के बीच पर्दे द्वारा दीवार खड़ी की। लेटी लेटी हुई ही मैं गहरी नींद में कब चल बसी,कब हुआ पता ही नहीं चला । कुछ घण्टो बाद बहुत ठण्ड महसूस होने लगी । नींद खुल गई थी, माँ नर्स से कुछ कह रही थी और नर्स सेलाइन बोतल की स्पीड ऊपर-नीचे कर रही थी। पापा इस बीच में बाहर से आये, गर्मी के कारण सारा शरीर पसीने से भीग गया था। बाहर तेज़ी लूह चल रही थी। मुँह पैर धोने के बाद अपने साथ लाये फलो को एक एक बैग से निकालने लगे, और उन्हें भी ध्यान से धो कर जूस निकालने लगे। फिलहाल मेरा काम तो कुछ नहीं रहा, बस पैट भर समय पे खाना और समय पे दवाई लेना । अपने अकेलेपन को महसूस करने के लिए ये खड़वी दवाई काफ़ी थी। इस बीच में पार्वती की ओर ये आदमी फ़ोन पकड़ कर आगे बढ़ा, "तुम्हारे मम्मी का फ़ोन आया हैं", फ़ोन पर बात करते हीं सारे भावनाओ से भरी चहरा पार्वती ने एक ही घूँट से आँसू द्वारा बाहर निकाली।
मेरी माँ ये सब देख कर रहा नहीं गया, तुरंत आदमी से पूछताछ की "बेटी को क्या हुआ? " , वो आदमी बोला, "माँ जी हमारा बेटी हुई है,दो हफ्ते भी नहीं हुए हैं, बेटी को और इसको ,दोनो को जॉन्डिस होगया हैं, पैदा होते ही वो जॉन्डिस से ग्रस्त हैं, बेटी को हरे रंग बल्ब के नीचे रखे हैं और इसको यहाँ। माँ का दूध भी पीने को अनुमति नहीं है, मेरी रानी माँ के दूध के बिना हीं मृत्यु से लड़ रही हैं। क्या करे हम अनपढ़ हैं ,ऐसे बड़े अस्पताल में ठहरना हमारे लिए मुश्खिल हैं , सालों भर कमाई यही जा रही हैं।
अचानक दर्द भरी चीक आयी, वो पार्वती का था। उसके पैट की पट्टियों को संभालते हुए मुड़ रही थी। पार्वती का पति चौक कर उठा। उसने तुरंत अपने पति के सहारे बाथरूम की ओर बड़ी। इस बीच मेरे पापा मेरे सर को सहलाते हुए संतरा का जूस पिलाया।
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