अनकही सात मछ्लियों की कहानी
ये कहानी शहर से दूर हरियाली के गोद में बसी एक गाँव की अनकही कहानी हैं , जो घर के आंगन में खेलती हुई पोती की हैं।
चारपाई पर लेटे हुए कई सारे सितारों को गिन रही वो गुड़िया दादा जी के कहानियों को सुनते-सुनते प्रायः सो जाती थी । चाँद की रोशनी में सात राजकुमार और सात मछलियों की कहानी प्रारंभ होता हीं था, वह छोटी युवरानी सपनों में विहार करती थी। दादा हर रात वही कहानी सुनाते थे, वह भी हर रात कहानी के आधे में ही पलक झपकती थी। दादा जी की वह लाडली एक क्षण भर न दिखे मानो पूरा गांव में ढिंढोरा मचता था। ऐसा तो होना ही था क्योंकि, थी ही वो एकलौती पोती जो 3 पीढ़ियों के बाद लक्ष्मी बनके आयी थी। घर में जब भी खेलती थी उसके चरण पर पायल छम-छम झूमते थे। उसके बड़ी बड़ी आँखे, घुँघराले बाल, तोते जैसे बोली पूरे गाँव को चकित रखता था। आईना पकड़कर ऐसे सजती थी जैसे नई दुल्हन श्रृंगार कर रही हो। वो अपने नाखून को लालिमा से सजाती थी, मास्टर जी भी साथ में बैठ जाते थे। बोलती थी तुम तो लड़की नही हो! मास्टर जी दादा जी के धर्म में थे, बोलते थे तुम लगाओ तो सही, और कहते थे, देखो मेरे नाखून कितने बड़े हैं, लाल रंग में खूब सूरत दिखेंगे !
शाम का समय होने के तुरंत बाद गाँव के कई परिवार के लोग उसके आंगन में उसके साथ दूरदर्शन देखने के लिए आ बैटते थे और आनंदराव मास्टर जी के पोती से खूब खेलते थे, तब आनंदराव जी आये और बोले देखो मेरे लाल रंग के नाखून मेरी पोती ने डाला हैं, पता है ये लेक्मी का हैं, पचास रुपए का, सारे बड़-छोटे उनके नाखून को आश्चर्यचकित से देखने लगे, पच्चास रुपेए का??? वही खड़ी पोती को कुछ समझ में नहीं आया, वो भी झुण्ड में झाँकने लगी, और अपने नाखून को सबको दिखाने के लिए हाथ उठाकर सबको दिखाने लगी। सब एक ही तारे भरी काली छतरी के नीचे खूब हँसने लगे ।
रात होते ही एक बार के लिए पैर दबाने से एक रुपया मिलता था, उस ज़माने में चार चॉकलेट आती थी एक रुपया में। तब गाँव भर में एक ही प्रसिद्ध दुकान था, नागभूषण अंकल जी का दुकान जो राम मंदिर के सामने था। जब भी वह जाती थी, नारिंज मिटाई खरीद कर आती थी। उसी गली के लोग सब पूछताछ करते थे, आनंदराव जी के बड़े बेटे की बेटी होना ? और पूछते थे क्या तुम मेरे डॉक्टर बेटे से शादी करोगी? वो झट से मुस्कुरारकर वहाँ से निकल जाती थी।
वहाँ से वो जाने पहचाने 'अवुलनानम्मा' यानी तेलुगू भाषा में 'आवु'-गाय और 'नानम्मा'-दादी के घर पहुँचकर खूब बाते करती थी, और वही उनके गाय को घास खिलाकर घर के सीधे रास्ते को छोड़कर, घूम फिरकर घर लौटती थी।
पोती अपनी आंगन में ऐसी तेवर से चलती थी जो सरपंच के साथ भी न हो। मास्टर जी के घर पर बहुत बड़े-बड़े लोग आते थे। उनसे, पोती का परिचय भी होता था, परिचय में ये था कि मास्टर जी की पोती दिल्ली की रहने वाली हैं, अंग्रेज़ी और हिंदी भाषाओं में अच्छे से बोलती हैं और लिखती भी हैं।
अपनी पोती का प्रतिभा दिखाने के लिए दादा जी ने एक पटिया पर वर्णमाला लिखने को आदेश दिया था। पोती बड़े आत्मविश्वास से लिखी तब तक हीं जब तक अ से 'ट' न आये ।
दादा जी से उस रात में कहानी नहीं सुनाई, न ही पोती का पलक झपका। दिन रात बीतते रहे, गुत्तावल्ली से दिल्ली प्रवास की तैयारी भी हो रही थी। कुछ ही घण्टों में घर के आंगन सुने हो गये और सूखे पत्ते गिरने लगे। दादा जी का सुट्टा फिर से लाल होने लगा , खांसी की आवाज़ रोम- रोम से निकलने लगी और धुआँ का काला धारा बादलों की तरह फेफड़े में छाने लगा।
चित्रकला-swatipatnaik@yandex.com
स्वाति बलिवाडा,
swatipatnaik@yandex.com
17-08-2020.
👌👌
ReplyDeleteVery Heart touching story
ReplyDeleteNice......
ReplyDeleteNak hindi chadavadam vachi kani ardhamavadhu try in telugu
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