साहित्य शिरोमणि मैथिली शरण गुप्त - १३४वी जयंती
मातृ देवो भव, पितृ देवो भव:
झाँसी राज्य के चिरगाँव नामक कस्बे में कवि श्री सेठ रामचरण और उनकी अर्थांगिनी श्रीमती काशीबाई को अपने दाम्पत्य जीवन का फल ०३/०८/१८८६ को मैथिली शरण गुप्त के रूप में मिला। 'कनकलता' उपनाम से पिता के कविताओं का प्रलय धारा चलती थी। पिता वैष्णव भक्त होने के कारण दशरथ पुत्र राम की कथा घर के दिनचर्य में भाग बनकर कानों में गूँजता था। स्वयं घर पर हीं संस्कृत, बांग्ला, हिंदी का व्यापक अध्यनन गुप्त जी ने किया यही अवस्था शिरोमणि गुप्त जी पर अधिक प्रभावपूर्ण रहा जो साकेत जैसे रचनाओं के मूलाधार था।
इस संधर्भ द्वारा यह सटीक रूप में दर्शाया गया की बाल अवस्था में गुप्त जी के माता पिता का किरदार अति महत्वपूर्ण भूमिका रहा जहा अपने क्रिया से संतान के सोच विचारो में ये एक मील का पत्थर बना रहा, परंतु तत्कालीन भारतीय समाज में ये विषय अति समानिया था किंतु अपने वाक से शून्य ,क्रिया से संपुर्ण रूप में प्रभावित रहने वाले बच्चो के लिए ये असमानिया रूप में विचार व्यक्त का मूल कारक था।
आचार्य देवो भव:
तत्कालीन समय भारतीय रचनाकारों को सरस्वती पत्रिका में स्थान पाना कोई शिखर अधिरोहण से कम नहीं था और स्थान पाने के बाद वह दर्जा को संभालना कोई संघर्ष से कम नहीं था। गुप्त जी के प्रतिभा तत्कालीन सरस्वती पत्रिका के संपादक हज़ारी प्रसाद द्विवेदी जी को आकृष्ट किया, जिन्होंने गुप्त जी की प्रतिभा को ओर सुधारा और सरस्वती की इतिहास बढ़ाने में गुप्त जी का भी एक मह्त्वपूर्ण योगदान बना।
हिन्दी साहित्य के शिरोमणि
हिन्दी के प्रसिद्ध कवि और हिन्दी साहित्य के इतिहास में वे खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि हैं। गुप्त जी को साहित्य जगत में 'दद्दा' नाम से सम्बोधित किया जाता था। उनकी कृति भारत-भारती ( १९१२) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के समय में काफी प्रभावशाली सिद्ध हुई थी जो हर किस्म के भारतीयों के स्वर से स्वर मिलता था, चाहे वह बच्चा हो या उनके दादा, ये भारत के हर कोणे को दर्शाया था और इसी कारण महात्मा गांधी ने उन्हें 'राष्ट्रकवि' की पदवी भी दी थी। उनकी जयन्ती ३ अगस्त को हर वर्ष 'कवि दिवस' के रूप में मनाया जाता है। सन १९५४ में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया।
राष्ट्रकवि के कलम से जन्म हुई शब्द मोतिया
महाकाव्य: साकेत; खंड काव्य-कविता संग्रह: जयद्रथ-वध, भारत-भारती, पंचवटी, यशोधरा, द्वापर, सिद्धराज, नहुष, अंजलि और अर्घ्य, अजित, अर्जन और विसर्जन, काबा और कर्बला, किसान, कुणाल गीत, पत्रावली, स्वदेश संगीत, गुरु तेग बहादुर, गुरुकुल, जय भारत, झंकार, पृथ्वीपुत्र, मेघनाद वध; नाटक: रंग में भंग, राजा-प्रजा, वन वैभव, विकट भट, विरहिणी व्रजांगना, वैतालिक, शक्ति, सैरन्ध्री, हिडिम्बा, हिन्दू; अनूदित: मेघनाथ वध, वीरांगना, स्वप्न वासवदत्ता, रत्नावली, रूबाइयात उमर खय्याम ।
झाँसी राज्य के चिरगाँव नामक कस्बे में कवि श्री सेठ रामचरण और उनकी अर्थांगिनी श्रीमती काशीबाई को अपने दाम्पत्य जीवन का फल ०३/०८/१८८६ को मैथिली शरण गुप्त के रूप में मिला। 'कनकलता' उपनाम से पिता के कविताओं का प्रलय धारा चलती थी। पिता वैष्णव भक्त होने के कारण दशरथ पुत्र राम की कथा घर के दिनचर्य में भाग बनकर कानों में गूँजता था। स्वयं घर पर हीं संस्कृत, बांग्ला, हिंदी का व्यापक अध्यनन गुप्त जी ने किया यही अवस्था शिरोमणि गुप्त जी पर अधिक प्रभावपूर्ण रहा जो साकेत जैसे रचनाओं के मूलाधार था।
इस संधर्भ द्वारा यह सटीक रूप में दर्शाया गया की बाल अवस्था में गुप्त जी के माता पिता का किरदार अति महत्वपूर्ण भूमिका रहा जहा अपने क्रिया से संतान के सोच विचारो में ये एक मील का पत्थर बना रहा, परंतु तत्कालीन भारतीय समाज में ये विषय अति समानिया था किंतु अपने वाक से शून्य ,क्रिया से संपुर्ण रूप में प्रभावित रहने वाले बच्चो के लिए ये असमानिया रूप में विचार व्यक्त का मूल कारक था।
आचार्य देवो भव:
तत्कालीन समय भारतीय रचनाकारों को सरस्वती पत्रिका में स्थान पाना कोई शिखर अधिरोहण से कम नहीं था और स्थान पाने के बाद वह दर्जा को संभालना कोई संघर्ष से कम नहीं था। गुप्त जी के प्रतिभा तत्कालीन सरस्वती पत्रिका के संपादक हज़ारी प्रसाद द्विवेदी जी को आकृष्ट किया, जिन्होंने गुप्त जी की प्रतिभा को ओर सुधारा और सरस्वती की इतिहास बढ़ाने में गुप्त जी का भी एक मह्त्वपूर्ण योगदान बना।
हिन्दी साहित्य के शिरोमणि
हिन्दी के प्रसिद्ध कवि और हिन्दी साहित्य के इतिहास में वे खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि हैं। गुप्त जी को साहित्य जगत में 'दद्दा' नाम से सम्बोधित किया जाता था। उनकी कृति भारत-भारती ( १९१२) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के समय में काफी प्रभावशाली सिद्ध हुई थी जो हर किस्म के भारतीयों के स्वर से स्वर मिलता था, चाहे वह बच्चा हो या उनके दादा, ये भारत के हर कोणे को दर्शाया था और इसी कारण महात्मा गांधी ने उन्हें 'राष्ट्रकवि' की पदवी भी दी थी। उनकी जयन्ती ३ अगस्त को हर वर्ष 'कवि दिवस' के रूप में मनाया जाता है। सन १९५४ में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया।
राष्ट्रकवि के कलम से जन्म हुई शब्द मोतिया
महाकाव्य: साकेत; खंड काव्य-कविता संग्रह: जयद्रथ-वध, भारत-भारती, पंचवटी, यशोधरा, द्वापर, सिद्धराज, नहुष, अंजलि और अर्घ्य, अजित, अर्जन और विसर्जन, काबा और कर्बला, किसान, कुणाल गीत, पत्रावली, स्वदेश संगीत, गुरु तेग बहादुर, गुरुकुल, जय भारत, झंकार, पृथ्वीपुत्र, मेघनाद वध; नाटक: रंग में भंग, राजा-प्रजा, वन वैभव, विकट भट, विरहिणी व्रजांगना, वैतालिक, शक्ति, सैरन्ध्री, हिडिम्बा, हिन्दू; अनूदित: मेघनाथ वध, वीरांगना, स्वप्न वासवदत्ता, रत्नावली, रूबाइयात उमर खय्याम ।
राष्ट्रकवि मैथिली सहारन गुप्त जी की १३४वी जयंती के अवसर पर ये शब्द माला एवं चित्र कला द्वारा कोटि कोटि प्रणाम।
स्वाति बलिवाडा
०३/०८/२०२०
swatipatnaik@yandex.com
Good
ReplyDeleteबधाई💐
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा लेख... बधाई हो💐💐
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