क्या होता वह अंतिम पृष्ट, अगर २०२० में रचते तमस ? - भीष्म साहनी जी की 106 वी जयंती ।
हिंदी साहित्य में प्रेमचंद की परम्परा को आगे बढ़ाने वाले वह व्यक्ति जो धर्म से अधिक , इंसानियत को महत्व मानके चलने वाले भीष्म साहनी जी का कुंडली का प्रथम क्षण सं १९१५ में तत्कालीन रावलपिंडी (वर्तमान पाकिस्तान ) एक समाज सेवी के परिवार में, हरबंस लाल साहनी और उनके जीवन साथी लक्ष्मी देवी का कनिष्ठ पुत्र जन्म हुआ जो साहित्य मंच पर भीष्म साहनी के नाम से प्रसिद्ध हुए और अमर रहे आज भी हमारे साथ।
साहनी जी अपने जीवन में अलग अलग पहलुओं को पार कर के साहित्य जगत में आये थे, जहा हर एक पेश का अलग हीं विचारधारा था। उनकी प्रसिद्ध रचना तमस के मुख्य अंशो से प्रभावित मेरे विचारधारा का समूह यह मंच पर में व्यक्त करना चहूँगी ,शायद वो चौकनिया हो परंतु सोचनीय भी ।
१९४७ और तमस का जन्म कारक :
देश का विभाजन, भारत का एक अंग विभाजित होकर पाकिस्तान के नाम से जाना गया।
सर पर सूरज होते हुए भी आसमान काला रंग में बदलता गया। विधि नामक गिद्धों का झुंड जिंदा को चोक के खाने लगे । खून की धारा कुरुक्षेत्र से कम नहीं थी। यही समाज में तत्कालीन परिणामों से जन्म हुआ "तमस" भी एक था, जो 'हर हर महादेव' और 'अल्लाह हो अकबर' के बीच एक छोटी सी धागा से जुड़ा हुआ सूखा पेट ही था जो पिसकर केवल गोल रोटी ही अपना जीवन चक्र मानता था।
आने वाला हर एक मील पत्थर एक की आयु को स्वाहा करता था , जो चलने वाले मजदूरों की रोजी रोटी को सवाल छोड़ता था। पेट में बना बीज का नाम और निशान का सवाल था, कुछ के पिता नही थे, कुछ के न माँ। विभाजन से ग्रस्त जनता की यह दशा साहनी जी के विचार तमस के रूप में बदले ।
और एक तमस २०२० :
शायद ये तमस में वह दलित न पैदल चलता, न उनकी बूढ़ी माँ का मरण होता, न होता अर्ध अंतिम संस्कार जहा सूखा पेट और सूखा लकड़ी क्षण भर में भस्म बने। न होता ये सब अगर तत्कालीन समाज में होते सोनू सूद । और नहीं तो , अगर भीष्म साहनी जी ओर १७ साल हमारे साथ , इस समाज में होते तो तत्कालीन प्रवासियों की स्थिति और एक परुषोत्तहम सोनू सूद को देखकर एक ओर तमस यानी द्वितीय भाग रचते, जहा अंतिम पृष्ट हर प्रवासी के जीवन में सुख दायक मोतियों से भरी मुसखा'राहत' मिला होता।
मुख्य रचनाएँ' - मेरी प्रिय कहानियाँ', 'झरोखे', 'तमस', 'बसन्ती', 'मायादास की माड़ी', 'हानुस', 'कबीरा खड़ा बाज़ार में', 'भाग्य रेखा', 'पहला पाठ', 'भटकती राख' आदि।
विषय -कहानी, उपन्यास, नाटक, अनुवाद।
शिक्षा - वर्तमान लाहौर में स्थित पंजाब विश्विद्यालय से एम.ए. (अंग्रेजी साहित्य) , पी.एच.डी. (१९५८)
पुरस्कार-उपाधि - 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' (१९७५), 'शिरोमणि लेखक सम्मान' (पंजाब सरकार) (१९७५), 'लोटस पुरस्कार' (अफ्रो-एशियन राइटर्स एसोसिएशन की ओर से १९७०), 'सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार' (१९८३), पद्म भूषण (१९९८).
आज हमारे डॉ. भीष्म साहनी, चीफ़ की दावत, अहं ब्रह्मास्मि जैसे कहानी संग्रहों के अधिपति साहनी जी का १०५वी जयंती के संधर्भ पर कोटि कोटि नमन।
स्वाति बलिवाडा,
swatipatnaik@yandex.com
साहनी जी अपने जीवन में अलग अलग पहलुओं को पार कर के साहित्य जगत में आये थे, जहा हर एक पेश का अलग हीं विचारधारा था। उनकी प्रसिद्ध रचना तमस के मुख्य अंशो से प्रभावित मेरे विचारधारा का समूह यह मंच पर में व्यक्त करना चहूँगी ,शायद वो चौकनिया हो परंतु सोचनीय भी ।
१९४७ और तमस का जन्म कारक :
देश का विभाजन, भारत का एक अंग विभाजित होकर पाकिस्तान के नाम से जाना गया।
सर पर सूरज होते हुए भी आसमान काला रंग में बदलता गया। विधि नामक गिद्धों का झुंड जिंदा को चोक के खाने लगे । खून की धारा कुरुक्षेत्र से कम नहीं थी। यही समाज में तत्कालीन परिणामों से जन्म हुआ "तमस" भी एक था, जो 'हर हर महादेव' और 'अल्लाह हो अकबर' के बीच एक छोटी सी धागा से जुड़ा हुआ सूखा पेट ही था जो पिसकर केवल गोल रोटी ही अपना जीवन चक्र मानता था।
आने वाला हर एक मील पत्थर एक की आयु को स्वाहा करता था , जो चलने वाले मजदूरों की रोजी रोटी को सवाल छोड़ता था। पेट में बना बीज का नाम और निशान का सवाल था, कुछ के पिता नही थे, कुछ के न माँ। विभाजन से ग्रस्त जनता की यह दशा साहनी जी के विचार तमस के रूप में बदले ।
और एक तमस २०२० :
शायद ये तमस में वह दलित न पैदल चलता, न उनकी बूढ़ी माँ का मरण होता, न होता अर्ध अंतिम संस्कार जहा सूखा पेट और सूखा लकड़ी क्षण भर में भस्म बने। न होता ये सब अगर तत्कालीन समाज में होते सोनू सूद । और नहीं तो , अगर भीष्म साहनी जी ओर १७ साल हमारे साथ , इस समाज में होते तो तत्कालीन प्रवासियों की स्थिति और एक परुषोत्तहम सोनू सूद को देखकर एक ओर तमस यानी द्वितीय भाग रचते, जहा अंतिम पृष्ट हर प्रवासी के जीवन में सुख दायक मोतियों से भरी मुसखा'राहत' मिला होता।
मुख्य रचनाएँ' - मेरी प्रिय कहानियाँ', 'झरोखे', 'तमस', 'बसन्ती', 'मायादास की माड़ी', 'हानुस', 'कबीरा खड़ा बाज़ार में', 'भाग्य रेखा', 'पहला पाठ', 'भटकती राख' आदि।
विषय -कहानी, उपन्यास, नाटक, अनुवाद।
शिक्षा - वर्तमान लाहौर में स्थित पंजाब विश्विद्यालय से एम.ए. (अंग्रेजी साहित्य) , पी.एच.डी. (१९५८)
पुरस्कार-उपाधि - 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' (१९७५), 'शिरोमणि लेखक सम्मान' (पंजाब सरकार) (१९७५), 'लोटस पुरस्कार' (अफ्रो-एशियन राइटर्स एसोसिएशन की ओर से १९७०), 'सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार' (१९८३), पद्म भूषण (१९९८).
आज हमारे डॉ. भीष्म साहनी, चीफ़ की दावत, अहं ब्रह्मास्मि जैसे कहानी संग्रहों के अधिपति साहनी जी का १०५वी जयंती के संधर्भ पर कोटि कोटि नमन।
चित्रकला - स्वाति बलिवाडा - swatipatnaik@yandex.com
स्वाति बलिवाडा,
swatipatnaik@yandex.com
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