यात्री

हमारे वैद्यनाथ मिश्र,हमारे नागार्जुन , हमारे यात्री जी का २२ वी पुण्यथिति (३०/०६/१९११-०५/११/१९९८)के अवसर पर  मेरी ओर से यह  छोटीसी कविता -" एक यात्री का आवाज़"

"एक यात्री का आवाज़"

मैं एक यात्री हूँ, 
न टिकता वहा का न यहा का, 
जन मानस का आवाज़ में बसता हूँ।
मज़दूरों का नारो में जीता हूँ, 
क्रांतिकारियों के कांत हूँ,
किसानों का तलाश हूँ।।

जाती न देखता हूँ
गरीब का,
देखा न गया हाल उनके घरों का,
अनदेखा रह न पाया 
जब आया अकाल और उसके बाद का,
सूखे थे वह चिंगारियां,
भूखे थे वे पेट,
मिट्टी को माँ मानके जो चले,
चलता हूँ मैं उनके साथ।

मनुष्य हूँ मैं,
बादल को घिरते देखा ,
साशन को शोषण करते देखा,
गरीब का गला घुटते देखा,
बदलते हुए उन वचन को देखा।

पूँछते था उनको,
जो लेते थे नाम मार्क्सवाद का की,
कौनसे मार्क्सवाद के बात करते हो?
चारु मजूमदार या चे गोवरा का ?
खिचड़ी का ये विप्लव
न काम के, न दाम के ,
उठाते हो बंदूक, 
करते तो हो आत्म समर्पण।

ये नागार्जुन रहेगा याद,
जब तक ये यात्री रहेगा भारत में भाग।

-स्वाति बलिवाडा
swatipatnaik@yandex.com

Comments

Popular posts from this blog

Room no. 906 English Version

My Grandfather from Guttavalli

आधुनिक काल की मीरा